करनाल। मराठों की भूमि करनाल-पानीपत पर कदम रखने के साथ ही हर एक मराठा खुद को धन्य समझता है। इस वीर भूमि पर वह वीर मराठा यौद्धा रहते हैं, जिनके पूर्वजों ने 1761 में महाराष्ट्र से यहां पहुंचकर देश की रक्षा और अस्मिता बचाने के लिए अपने प्राणों की आहुति देकर अफगान शासक अहमद शाह अब्दाली को वापस अफगानिस्तान लौटने पर मजबूर कर दिया था। मराठों के पराक्रम को देखते हुए अब्दाली ने कभी भी भारत पर दोबारा आक्रमण करने की हिम्मत नहीं दिखाई। तीसरे युद्ध को 259 वर्ष पूर्ण होने पर उन्ही यौद्धाओं को श्रद्धांजलि देने के लिए देश और विदेश से मराठा बंधु यहां पहुंचे है। यह बातें नागपुर के महाराजा श्रीमंत मुधोजी राजे भौंसले और बाजीराव मस्तानी के वंशज नवाब सदाब बहादुर ने श्रीमदभागवद गीता द्वार के पास से मराठा सेना शोभायात्रा को झंडी दिखाकर रवाना करते हुए कही। इस दौरान उनके साथ मराठा जागृति मंच के अध्यक्ष वीरेंद्र मराठा, प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. वशंतराव मोरे, मोरिशश से डॉ. होमराजन गौवरिया, नेपाल से इंदिरा मराठा सहित देश के विभिन्न हिस्सों से पहुंचे मराठा बंधू मौजूद रहे। भौंसले ने कहा कि इतिहासकारों की खोज के बाद पता लगा है कि हरियाणा में बसने वाला रोड़ समाज पानीपत के तीसरे युद्ध के बचे हुए मराठों के वंशज हैं। इससे महाराष्ट्र के हर परिवार को गर्व की अनुभूति होती है कि आज उनके भाई हरियाणा में भी बसते हैं। वहीं मराठा जागृति मंच के अध्यक्ष वीरेंद्र मराठा ने बताया कि पानीपत कार्यक्रम में मुख्यमंत्री मनोहर लाल बतौर मुख्य अतिथि शिरकत करेंगे। मराठा सेना शोभायात्रा अग्रसेन चौक से बस स्टैंड से मेन बाजार होते हुए मीरा घाटी चौक से जीटी रोड से घरौंडा के रास्ते होते हुए पानीपत के काला आंब पहुंची। शोभायात्रा के दौरान कर्णनगरी जय भवानी जय शिवाजी और हर हर महादेव के जयघोष के साथ गुंज उठी। शोभयात्रा में पुरानी युद्ध कला का प्रदर्शन भी दिखाया गया। शोभायात्रा में
पानीपत के तीसरे युद्ध के प्रसंगों को जीवंत कर गई मराठा सेना शोभयात्रा
शोभायात्रा में पानीपत के तीसरे युद्ध के प्रसंगों को जीवंत करती झांकियां, छत्रपति शिवाजी महाराज की झांकी, जीजामाता की झांकी सहित मराठा सेना के तोपखाना प्रमुख इब्राहिम खान गार्दी की तोप की झाांकी प्रमुख रही। शोभायात्रा में मराठों की शौर्य के गीत सुनकर हर कोई वीरता से प्रेरित होकर झूम उठा। यात्रा में हजारों की संख्या में बाइकों के काफिले के साथ कर्णनगरी भगवामय हो गई। जहां शोभायात्रा में युवा ठंड में भी बाइकों पर सवार होकर वीरता से चलते दिखाई दिए। वहीं महिलाएं और बच्चे भी पीछे नहीं रहे। महिला और बच्चे गाडियों में शोभयात्रा में शामिल हुए। जहां से भी शोभयात्रा गुजरी हर किसी ने एक पल के लिए रूककर यात्रा को जरूर देखा।
युवाओं में जागृत हुई वीरता और देशभक्ति
वीरता की धुनों और छत्रपति शिवाजी महाराज की जय, हर हर महादेव के उदघोष के साथ जैसे ही शोभयात्रा ने कर्ण नगरी में प्रवेश किया तो सारा माहौल भक्तिमय हो गया। हर एक युवा ने शोभायात्रा को ध्यान से देखा। वीरता की धुनों, ढोल नगाड़ों की थाप ने युवाओं ने वीरता को जागृत कर दिया। जहां से शोभयात्रा गुजरी हर जगह फूलों के साथ स्वागत किया गया। वहीं शोभायात्रा में डीजे पर गीतों के माध्यम से मराठों व पानीपत के तीसरे युद्ध का पूरा इतिहास पेश किया गया।
2003 से शुरू हुआ रोड़मराठों का यह सिलसिल, हर वर्ष बढ़ रहा है
मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष वीरेंद्र मराठा ने इतिहास को 2003 से पहले खूब खंगाला। इसके लिए उन्होंने विश्व प्रसिद्ध इतिहासकारों की सहायता ली। इतिहासकारों और सरकारी रिकॉर्डों को ध्यान में रखते हुए 2003 में इस निष्कर्ष पर पहुंचे की हरियाणा की रोड़ जाति ही पानीपत के तीसरे युुद्ध के मराठों की ही वंशज है। इसके लिए मराठा ने महाराष्ट्र में कई जिलों में जाकर वहां के व्यवहार और बोलचाल सहित गोत्रों पर काफी अध्ययन किया, जिसमें साफ तौर पर सामने आया कि रोड़ जाति ही पानीपत के तीसरे युद्ध के बचे हुए मराठों के वंशज है। 2003 से कुरूक्षेत्र में यह पर्व मनाकर शुरूआत हुई। तब से रोड़मराठों ने इस दिन को एक पर्व के रूप में मनाना शुरू कर दिया। 2005 में करनाल में मराठा मिलन समारोह का आयोजन किया गया, जिसमें कल्पना राजे भौंसले सतारा, महाराष्ट्र और छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशज उदयनराजे भौंसले ने शिरकत की थी। वहीं इसके बाद कार्यक्रम को छोटे बड़े स्तरों पर निरंतर मनाया गया। बता दें कि 2012 में पानीपत में देश की पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल इस समारोह में पहुंचकर रोड़ जाति को मराठा होने की बात कह चुकी है। इसके अलावा मराठा राजपरिवारों के सदस्य और बाजीराव मस्तानी के वंशज बांदा के नवाब सदाब अली बहादुर पेशवा भी शिरकत कर कार्यक्रम की शोभा बढ़ा चुके हैं।