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Maratha Jagriti Manch
पानीपत की तीसरी लड़ाई के 258 वर्ष पुरे होने पे शहीदों को श्रधांजलि अर्पित करने हेतु अखिल भारतीय मराठा जाग्रति मंच द्वारा करनाल शहर से पानीपत तक शोभा यात्रा निकाली गयी जिसका नेतृत्व मंच क अध्यक्ष मराठा वीरेंदर वर्मा द्वारा किया गया
वीरेंदर मराठा जी ने राष्ट्रपति प्रतिभा राजे पाटिल के सामने पुरे रोड मराठा इतिहास के विभिन्न पहलुओं पे प्रकाश डाला और रोड बरादरी की संस्कृति और रहन सहन के बारे में बताया
रोड मराठा इतिहास पे लिखी बुक का राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल द्वारा विमोचन किया गया, और वीरेंदर वर्मा को राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित किया गया

रोड मराठा इतिहास गाथा

भारतवर्ष के इतिहास में असंख्य उतार-चढाव आए । आज के परिप्रेक्ष्य में देखें तो दिल्ली में मुस्लिम शासकों के सत्तासीन होने के उपरान्त कुछ ऐसे परिवर्तन हमारे सामाजिक ढांचे में आए जिनके चिन्ह ठोस रुप में आज भी समाज में दिखाई देते है। विदेशी मुस्लिम शासकों के हमलों के पश्चात 8वीं व 9वीं शताब्दी मे 'राजपूत' जाति की उत्पत्ति हुई। 13वीं शदी में गुलाम वंश के प्रथम शासक तथा क्षत्रीय वंश राजपूताना से उठकर दक्षिण के राज्यों विशेष तौर पर महाराष्ट्र में स्थापित हुए । राजा रोड़ जो बावन गढ़ी का शासक था, अपनी राजधानी कगरोल से उठकर महाराष्ट्र चला गया। बेटी का डोला देना मंजूर नहीं था तथा शौषक का मुकाबला करने की ताकत नहीं थी ।
जैसे राजपूत जाति की उत्पत्ति 8वीं व 9वीं शदी में हुई, इसी प्रकार 14वीं से 16वीं शदी के बीच महाराष्ट्र में 'मराठा' जाति की उत्पत्ति हुई । 'मराठा जाति' राजपूत व इन्हीं के समकक्ष अन्य क्षत्रीय वंश तथा ग्वाले, धनगर,गुरजर, कुनबी इत्यादि समूहों का एक समिश्रण था । इस वर्ग ने 17वीं शदी में ठोस रुप लिया तथा अपनी एक अलग पहचान कायम की। छ्त्रपति शिवाजी महाराज को इनकी विशिष्ट पहचान को चमकाने का पुरा श्रेय जाता है ।
छ्त्रपति शिवाजी महाराज की प्रेरणा से 18वीं शदी के प्रारम्भिक वर्षों मे मराठों ने भारत-विजय अभियान शुरू किया । ईसवी सन 1720 तक पुर्ण भारत पर 'अटक से कटक' तथा 'तंजावर से पेशावर' तक अपना नियन्त्रण कायम किया । ईसवी सन 1760 में दिल्ली लाल किले में राज्यभिषेक समारोह के आयोजन की योजना बनी । तभी उत्तरी भारत के कुछ पराधीन हुए शासकों के आयोजन की योजना बनी । तभी उत्तरी भारत के कुछ पराधीन हुए शासकों ने अफ़गान के बादशाह अहमदशाह अब्दाली को सेना सहित दिल्ली पर आक्रमण करने व शासन सम्भालने का न्यौता दे दिया । मराठे पहले ही सदाशिवराव भाउ के नेतृत्व में दिल्ली की और कुच कर चुके थे। उन्होनें 'कुंजपुरा' नवाब के पास अब्दाली के लिए छिपाया हुआ खजाना लूट लिया । तद्पश्चात 'कुरुक्षेत्र' मे डेरा डाला । अफ़गान शासक अहमदशाह अब्दाली 'दोआबा' से उत्तर प्रदेश होता हुआ बागपत-सोनीपत के पास से यमुना नदी पार करके पानीपत की और बढ़ा । खबर होते ही मराठा सेना ने भी अपनी महिलाओं को कुरुक्षेत्र ठह्रराते हुए पानीपत की और कुच किया । दोनों सेनाएं अन्तत: 'पानीपत' में भिड़ गई। अफ़रा-तफ़री मच गई । भगदढ़ हुई । कुछ मराठा योद्धा अपनी महिलाओं की सुरक्षा के लिए कुरुक्षेत्र आए। अहमदशाह अब्दाली ने पिछा किया । इससे पहले कि अब्दाली कुरुक्षेत्र पहुंचता; मराठों ने महिलाओं सहित कुरुक्षेत्र के दक्षिण में स्थित घने ढ़ाक के जंगलों में आश्रय ले लिया । अब्दाली व नवाबों ने ड्योण्डी (मुनादी) पिटवा दी कि एक मराठा मुण्डी लाओ और एक सोने का सिक्का (स्वर्णमुद्रा) ईनाम में पाओ। महाराष्ट्र से आया एक भी मराठा ने 'रोड़' नाम से जीवन व्यतीत करना प्रारम्भ किया। हमारे बुजुर्गों ने इस बारें में हमें स्पष्ट सकेत भी दिए परन्तु जीवन में उतार-चढ़ाव के कारण हमारा उन बातों में छिपी गह्रराईयों व सच्चाईयों की और ध्यान नहीं गया। विस्तार से पड़ें

प्रतिक्रिया

इस पुस्तक के संदर्भ में अपनी शुभाशंसा प्रस्तुत करने में, मैं गौरव का अनुभव कर रहा हूँ। स्वातंत्र्य सूर्य शिवाजी भारतीय राष्ट्रवाद के जनक हैं। उनके ही वंशजों ने स्वतंत्रता का परचम पूरे भारतवर्ष में लहराया। इस महान कार्य में अपना बलिदान देकर भारतीय अस्मिता की रक्षा करने वाले पानीपत की तीसरी लड़ाई में (इ. स. 1761) दुर्भाग्य से हारे हुए वीर मराठों के वंशज ही आज का रोड़मराठा इतिहास की सत्यता पर किंचित भी शक की गुंजाईश नहीं रहती।, महाभारत में पांडवों के लिए एक साल का अज्ञातवास था, परंतु शिवभारत के इन रोड़मराठों के लिए लगभग ढाई सौ साल का अज्ञातवास रहा है। इन पुरुषार्थी वीर पुरूषों का अज्ञातवास अब समाप्त हो गया है। अपने गौरवशाली इतिहास के आधार पर यह रोड़मराठा समाज निश्चित ही भारत को महान बनाने में महत्वपूर्ण योगदान करेगा। मुझे पुरा विश्वास है कि यह पुस्तक विलुप्त हो रहे समाज को अपने गौरवशाली इतिहास से जोड़कर सफ़लता की सीढ़ियों तक पहुँचाएगी।

शिवाजी विश्वविद्यालय, कोल्हापुर (महाराष्ट्र) में 'छ्त्रपति शाहू महाराज मराठा इतिहास अनुसंधान केन्द्र द्वारा हम रोड़मराठा समाज का ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सामाजिक आदि विविध स्तर पर अनुसंधान प्रारंभ कर रहे हैं। इस अनुसंधान कार्य में 'कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय और मराठा जाग्रति मंच' का सहयोग हम प्राप्त करेंगे।

मुझे इस बात की खुशी है कि ' रोड़मराठा इतिहास भाग -1 और रोड़मराठा इतिहास भाग-2' पुस्तकें महाराष्ट्र में मराठा बंधुओं को 1761 की पानिपत की तीसरी लड़ाई में खोए हुए भाईयों से फ़िर से सामाजिक और सांस्कृतिक संबंध स्थापित करने में बहुत ही सहायक होंगी। यह पुस्तक प्रसादगुण युक्त सरल भाषा में होने के कारण आम आदमी इसे आसानी से समझ सकेगा। महत्वपूर्ण कार्य के लिए मेरी शुभकामनाएँ बनी रहेंगी।

संस्थापक
हिंदवी स्वराज्य , मराठा सेना

मराठा जाग्रति मंच (हरियाणा) की पुस्तक "रोड़मराठा इतिहास भाग-2" पढ़कर बड़ी प्रसन्नता हुई। इस पुस्तक के संदर्भ में अपनी शुभाशंसा प्रस्तुत करने में, मैं गौरव का अनुभव कर रहा हूँ। स्वातंत्र्य सूर्य शिवाजी भारतीय राष्ट्रवाद के जनक हैं। उनके ही वंशजों ने स्वतंत्रता का परचम पूरे भारतवर्ष में लहराया। इस महान कार्य में अपना बलिदान देकर भारतीय अस्मिता की रक्षा करने वाले पानीपत की तीसरी लड़ाई में (इ. स. 1761) दुर्भाग्य से हारे हुए वीर मराठों के वंशज ही आज का रोड़मराठा इतिहास की सत्यता पर किंचित भी शक की गुंजाईश नहीं रहती।, महाभारत में पांडवों के लिए एक साल का अज्ञातवास था, परंतु शिवभारत के इन रोड़मराठों के लिए लगभग ढाई सौ साल का अज्ञातवास रहा है। इन पुरुषार्थी वीर पुरूषों का अज्ञातवास अब समाप्त हो गया है। अपने गौरवशाली इतिहास के आधार पर यह रोड़मराठा समाज निश्चित ही भारत को महान बनाने में महत्वपूर्ण योगदान करेगा। मुझे पुरा विश्वास है कि यह पुस्तक विलुप्त हो रहे समाज को अपने गौरवशाली इतिहास से जोड़कर सफ़लता की सीढ़ियों तक पहुँचाएगी।

शिवाजी विश्वविद्यालय, कोल्हापुर (महाराष्ट्र) में 'छ्त्रपति शाहू महाराज मराठा इतिहास अनुसंधान केन्द्र द्वारा हम रोड़मराठा समाज का ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सामाजिक आदि विविध स्तर पर अनुसंधान प्रारंभ कर रहे हैं। इस अनुसंधान कार्य में 'कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय और मराठा जाग्रति मंच' का सहयोग हम प्राप्त करेंगे।

मुझे इस बात की खुशी है कि ' रोड़मराठा इतिहास भाग -1 और रोड़मराठा इतिहास भाग-2' पुस्तकें महाराष्ट्र में मराठा बंधुओं को 1761 की पानिपत की तीसरी लड़ाई में खोए हुए भाईयों से फ़िर से सामाजिक और सांस्कृतिक संबंध स्थापित करने में बहुत ही सहायक होंगी। यह पुस्तक प्रसादगुण युक्त सरल भाषा में होने के कारण आम आदमी इसे आसानी से समझ सकेगा। मराठा जागृति मंच के इस ऐतिहासिक महत्वपूर्ण कार्य के लिए मेरी शुभकामनाएँ बनी रहेंगी।

संस्थापक
हिंदवी स्वराज्य , मराठा सेना

स्मृति

करनाल। मराठों की भूमि करनाल-पानीपत पर कदम रखने के साथ ही हर एक मराठा खुद को धन्य समझता है। इस वीर भूमि पर वह वीर मराठा यौद्धा रहते हैं, जिनके पूर्वजों ने 1761 में महाराष्ट्र से यहां पहुंचकर देश की रक्षा और अस्मिता बचाने के लिए अपने प्राणों की आहुति देकर अफगान शासक अहमद शाह अब्दाली को वापस अफगानि

काला आंब पर समारोह के आयोजन से पहले मराठा सेना शोभायात्रा निकाली गई। इसमें पानीपत के तीसरे युद्ध को झांकियों के माध्यम से दर्शाया गया। शोभायात्रा में छत्रपति शिवाजी महाराज की झांकी, जीजामाता की झांकी, मराठा सेना के तोपखाना प्रमुख इब्राहिम खान गार्दी की झांकी सहित हजारों की संख्या में लोग ढ़ोल नगा

पानीपत। पानीपत की पावन भूमि का नाम जिस युद्ध और मराठो के वीरता के कारण इतिहास में दर्ज हुआ सोमवार को उसी पानीपत के तीसरे युद्ध के 258 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में शौर्य दिन समारोह का आयोजन किया गया। यहां की धरती पर मराठों एवं अहमदशाह अब्दाली के बीच लड़ा गया तीसरा युद्ध किसी की जीत और हार का य

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